प्रेरक परिचय
यह काम तुम्हें शोभा नहीं देता - बषपन से ही यह वाक्य हमें अनुशासित करता आया है। माँ ने हमें इसी तरह अपने लिए योग्य कर्म करने की शिक्षा दी और अयोग्य कर्म करने से परावृत किया। भगवान् श्री कृष्ण ने भी रण से पलायन करने के इच्छुक अर्जुन को इन्हीं शब्दों से लताड़ा था। हमारा कर्म ही हमारा परिचय बनता है। कर्म में कुशलता को प्राप्त करने के लिए ही हम सदैव प्रयत्न करते रहते हैं।
छोटी-छोटी लड़ाइयों में भी हम एक दूसरे से पूछते हैं - तुम अपने आपको क्या समझते हो ? वास्तविक आवश्यकता यह है कि स्वयं से यही प्रश्न पूछे - " तुम कौन हो ? क्या करने आये हो? इस जीवन का उद्देश्य क्या है? " इन्हीं प्रश्नों से अपने आपके परिचय को खोजने की यात्रा प्रारम्भ होती है - एक खोज अन्दर की ओर.....
